भगवान श्रीराम के गुण अनेकों ग्रंथों में वर्णित हैं । एक बात बहुत प्रसिद्ध है कि राम जी कोई बात दो बार नहीं बोलते । इसका मतलब क्या है ? इसका मतलब है कि रामजी के एक बार बोलने से ही जो बोलते हैं वह हो जाता है । इसलिए रामजी को एक बात दो बार बोलने की जरूरत नहीं पड़ती है ।
जो अज्ञानी हो अथवा जो सोच-बिचार कर न बोलता हो उसे दो बार या अधिक बार बोलने की जरूरत हो सकती है । कही हुई बात में संशोधन करने की जरूरत पड़ सकती है । लेकिन जो ज्ञान-विज्ञान स्वरूप ही है उसे दो बार बोलने की जरूरत ही नहीं है ।
ऐसे ही जो सामर्थ्य हीन है
उसे एक बात को एक बार से अधिक बार बोलने की जरूरत पड़ती है । लेकिन जो सर्व
सामर्थ्यवान है उसे एक बात को दो बार बोलने की जरूरत नहीं पड़ती ।
इसी तरह से जो झूठ बोलता हो
उसे अपनी बात घुमा-फिराकर अथवा एक बात को
एक बार से अधिक बार बोलने की जरूरत पड़ सकती है । लेकिन जो सत्य स्वरूप ही
है उसे एक बात को दो बार बोलने की जरूरत कहाँ है । राम जी ने सत्य बोलने का व्रत
ले रखा है । वे सदैव सत्य ही बोलते हैं । रामजी सत्य का दृढ़तापूर्वक पालन करते है ।
और रामजी को सत्य बहुत प्रिय है । रामजी को सत्य बोलने वाले भी बहुत प्रिय होते
हैं । सत्यसंध, सत्यव्रत, सत्यविक्रम, सत्यप्रिय आदि भगवान श्रीराम के नाम हैं ।
इसी बात को सूरदासजी महाराज सूरसागर में कहते है
कि-
आइ बिभीषन सीस नवायौ ।
देखतहीं रघुबीर धीर, कहि लंकापती बुलायौ ।।
कह्यौ सो बहुरि कह्यौ नहिं रघुबर, यहै बिरद चलि आयौ ।
भक्त-बछल करुनामय प्रभु कौ, सूरदास जस गायौ ।।
अर्थात जब विभीषण जी ने आकर
राम जी को प्रणाम किया, तब उन्हें देखते ही धीर बीर रघुबीर रामजी ने उन्हें
लंकापति कहकर बुलाया । सूरदास जी कहते हैं कि रामजी का यह विरद चला आ रहा
है कि उन्होंने जो एक बार कह दिया उसे दुबारा कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी अर्थात एक
बार कहते ही वह कार्य पूर्ण हो गया । विभीषण जी को रामजी ने लंकपति कहकर बुलाया और
लंका बिभीषण जी की हो गई । सूरदास जी कहते हैं कि ऐसे भक्तवत्सल करुणामूर्ति
स्वामी भगवान श्रीराम का मैं यशोगान करता हूँ ।
।। जय श्रीराम ।।
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