श्रीसीताराम जी के विवाह जैसा श्रीसीताराम विवाह ही है । न ऐसा विवाह पहले किसी का हुआ था, न इनके सिवा
किसी का हुआ है और न आगे होगा ।
विवाह का जैसा सौभाग्य-उत्सव-सुख आदि भगवान श्रीराम को मिला उस
तरह का सौभाग्य आज तक किसी को नहीं मिला । यहाँ तक भगवान नारायण और भगवान
श्रीकृष्ण को भी नहीं मिला ।
भगवान नारायण दूल्हा
बनकर जाएँ । बरात जाए । सबका आदर-सत्कार हो । रोज नए-नए आनन्दोत्सव हों
और जल्दी वापस आने की अनुमति न मिले । यह
सुख सौभाग्य भगवान नारायण को भी नहीं मिला ।
भगवान श्रीकृष्ण ने विवाह तो बहुत किए आठ पटरानियों सहित सोलह
हजार एक सौ आठ लेकिन दूल्हा बनने का और ससुराल में आदर मान सम्मान और आनंदोत्सव का
सुख-सौभाग्य जो भगवान श्रीराम को मिला वह नहीं मिल पाया । लड़ाई-युद्ध ऊपर से करना
पड़ा ।
सारे सगुनों को किसी भी विवाह में एक साथ झूमने का खुश होने का
उदित होने का कभी सौभाग्य ही नहीं मिला । इसलिए ये सोचते थे कि विधाता ने हम लोगों
को झूठे ही बना दिया । आज तक हम लोग एक साथ कभी किसी विवाह जैसे मांगलिक कार्य में
अपनी उपस्थिति नहीं देख पाए । लेकिन जब सगुनों ने सुना कि श्रीसीताराम जी का विवाह
होने जा रहा है तो सब खुशी में झूम उठे और कहने लगे कि आज हम लोग धन्य हो गए । आज
विधाता-व्रह्मा ने हम लोगों को सत्य कर दिया क्योंकि आज पहली बार किसी विवाहोत्सव
में हमें एक साथ उदित होने का मौका मिला रहा है-
सुनि अस व्याह सगुन सब नाचे । आज
कीन्हे विरंचि हम साँचे ।।
।। श्रीसीताराम विवाह महामहोत्सव की
जय ।।
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