जैसे-जैसे कलियुग आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे गुरू और जगदगुरू भी बढ़ रहे हैं । आजकल कई स्वयंभू गुरू और जगदगुरू मनमाना उपदेश भी दे रहे हैं । कभी-कभी ऐसा लगता है कि स्वयंभू गुरुओं और जगदगुरुओं का वश चले तो मंदिरों में भगवान की प्रतिमाओं की जगह अपनी प्रतिमाएँ लगवा दें ।
एक स्वयंभू गुरू अपने शिष्यों को उपदेश देते हुए कह रहे थे कि जिस महापुरुष को मानों उसकी कही हुई बात को एक बार में ही मान लेना है । अर्थात उसमें कोई सोच-विचार नहीं करना है । जो कह दिया सो कह दिया । बस करना है । उसे मानना है । दूसरी महत्वपूर्ण बात कह रहे थे कि जिस महापुरुष को मानो उसमें किसी भी स्थिति और परिस्थिति में दोष नहीं देखना है । आजकल कई लोगों का कहना है कि सारे शास्त्र एक तरफ और गुरू आज्ञा एक तरफ । अर्थात ये लोग ऐसा मानते और समझते हैं कि शास्त्र गलत हो सकते हैं लेकिन स्वयंभू लोग गलत नहीं हो सकते ।
ऐसा देख-सुनकर मुझे
एकमात्र अपने जगद्गुरू की बातें याद आती हैं । सर्व समर्थ होने के बावजूद उन्होंने
कभी भी ऐसा नहीं कहा कि मेरी कही हुई बात को एक बार में ही मान लेना है । और कभी
भी दोष नहीं देखना है । वैसे उनमें न कोई दोष था और न ही कभी कोई दोष होने की
सम्भावना ही थी । फिर भी उन्होंने कभी नहीं कहा कि कभी भी और किसी भी स्थिति और
परिस्थिति में मुझमें दोष नहीं देखना है । और मेरे मुँह से जो निकल जाय उसे आँख
मूँदकर मान लो ।
समझ में नहीं आता है कि जब मेरे जगदगुरू जी ने
कभी ऐसा नहीं कहा तो आजकल के गुरू और जगद्गुरू ऐसा क्यों कहते हैं ? ऐसा उपदेश
क्यों देते हैं ? इन लोगों को किस बात का डर है । और ये लोगों को सोच समझकर कुछ करने और मानने के लिए क्यों प्रेरित नहीं करते हैं ।
मेरे जगद्गुरु ज्ञान-विज्ञान
में संपूर्ण हैं । परिपूर्ण हैं । वे विशुद्ध विज्ञान के ही प्रतिमूर्ति हैं । फिर भी
कहते थे कि मैंने जो बातें तुमको बताईं है वे यदि तुम्हें अच्छी लगें तो मान लो ।
और इनके अनुसार कार्य करो । और यदि मेरे द्वारा कुछ भी ऐसा बोल दिया गया हो जो अनीतिपूर्ण
हो तो बिना किसी भय के मुझे तुरंत रोक दो । और बता दो कि यह गलत है और ऐसा नहीं
होता है । अथवा यह आपने गलत बोल दिया है । इतने उदार थे ।
इतनी उदारता आज के स्वयंभू गुरुओं और जगद्गुरुओं में कहाँ से आएगी । उन लोगों में कहाँ से आएगी जो
कहते हैं कि सारे शास्त्र एक तरफ और गुरू आज्ञा एक तरफ । अर्थात ये लोग मानते हैं
कि शास्त्र गलत हो सकता है लेकिन ये लोग गलत नहीं हो सकते । आजके स्वयंभू गुरुओं
और जगद्गुरुओं से कोई कह दे कि आप गलत बोल रहे हो तो लेने के देने पड़ जाए ।
धन्य हैं मेरे जगादगुरू जी । सच है न उनके जैसा कोई था, न है
और न आगे होगा-
राजराजं रघुवरं कौशल्यानंदवर्धनं ।
भर्गं वरेण्यं विश्वेशं रघुनाथं जगदगुरुम ।।
जौ अनीति कछु भाषौ भाई । तौ मोहि बरजहु भय बिसराई ।।
।। जय श्रीराम ।।
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