रामायण में सुपर्णनखा के नाक और कान काटे जाने की कथा बहुत प्रसिद्ध है और सभी लोग इस कथा से परिचित भी हैं । लेकिन रामायण में अनेक राक्षसों के नाक और कान काटे गए थे । और लंका में नाक और कान कटे हुए एक-दो नहीं बल्कि कई राक्षस थे ।
सर्वप्रथम ताड़का की, जो रिश्ते में रावण की नानी थी, नाक और कान
दोनों काटे गए थे । लक्ष्मणजी ने ताड़का की नाक और कान काट लिए थे । रावण का मामा
मारीच इसी ताड़का का बेटा था ।
सुपर्णनखा के बारे में सबको पता ही है ।
रावण के पराक्रमी भाई कुम्भकर्ण की नाक और कान सुग्रीव जी ने युद्ध
क्षेत्र में काट लिया था ।
इसके अलावा युद्ध क्षेत्र में और कई राक्षसों के नाक और कान काट लिए
गए थे ।
बानर और भालू रामजी की जय जयकार करने वाले और राक्षस रावण की जय जयकार करने वाले थे । जब बानर और भालू लंका में किसी राक्षस को पकड़ते थे तब बानर और भालू उनके नाक और कान काटकर और भगवान श्रीराम की जय जयकार करके, भगवान श्रीराम का सुयश कहकर वापस भेज देते थे ।
इस प्रकार लंका में नाक और कान से रहित कई राक्षस थे और कई नाक और कान कटने के बाद युद्ध क्षेत्र से वापस ही नहीं लौट सके थे-
दसनन्ह काटि नासिका काना । कहि प्रभु सुयश देहिं तब जाना ।।
जो राम विमुख हैं उनकी नाक और कान तो कट ही जाते हैं । लोक में नहीं तो परलोक में कटना तय ही हैं । क्योंकि-
कबहुँक करि करुना नर देहीं । देत ईश बिनु हेतु सनेही ।।
एहि तन कर फल विषय न भाई । स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई ।।
।। जय श्रीराम ।।
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