भगवान श्रीराम को परम पावनी अयोध्या नगरी बहुत प्रिय है । भगवान श्रीराम अपने सखाओं से कहते कि यह-अयोध्या पुरी बहुत पवित्र और यह देश बहुत ही सुंदर है-'पावन पुरी रुचिर यह देसा' ।
रामजी कहते हैं कि केवल अयोध्या जी ही नहीं यहाँ के बासी भी मुझे बहुत प्रिय हैं और यह नगरी सुख की राशि है और मेरे परम धाम को देने वाली है-
भगवान श्रीराम कहते हैं कि अयोध्या जी परम सुहावनी हैं और मेरी
जन्मभूमि हैं । इनके उत्तर दिशा में परम पावनी सरजू प्रवाहित हो रही हैं
जिनमें स्नान करने से सहज ही लोग मेरे समीप-धाम
में निवास प्राप्त कर लेते हैं-
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि । उत्तर दिसि बह सरजू पावनि ।।
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा । मम समीप नर पावहिं बासा ।।
भगवान श्रीराम अपने सखाओं से कहते हैं कि जद्यपि सबने बैकुंठ का गुण
गान किया है । बड़ाई किया है । बैकुंठ की महिमा बेद और पुराण में प्रसिद्ध है-वर्णित
है और संसार जानता भी है । फिर भी मुझे
अयोध्याजी इतना बैकुंठ भी प्रिय नहीं है । इस रहस्य को कोई-कोई अर्थात कुछ लोग ही
जानते हैं-
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना । बेद पुराण बिदित जग जाना ।।
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ । यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ ।।
चूँकि अयोध्याजी और यहाँ के बासी दोनों भगवान श्रीराम को बहुत प्रिय
हैं इसलिए भगवान श्रीराम अयोध्याजी में ग्यारह हजार वर्ष तक प्रत्यक्ष रह गए ।
जबकि और किसी अवतार में भगवान इतने समय तक प्रत्यक्ष बास नहीं किए थे ।
रामजी ने सखाओं को बतलाया
कि यदि ब्रह्मा जी को संकोच न हो तो मैं अयोध्या जी को छोड़कर कभी भी बैकुंठ न जाऊँ
। सबके लोक अलग हैं और भगवान लीला करने के लिए यहाँ आए थे । यदि भगवान यहीं रह
जाते तो व्रह्मा जी को संकोच होता कि भगवान तो वहीं रह गए जबकि लीला पूरी करके
भगवान को अपने धाम आ जाना चाहिए । भगवान की इच्छा के विपरीत व्रह्मा जी संकोच ही
कर सकते थे । लेकिन उन्हें संकोच न हो इसलिए मर्यादा बस जाना जरूरी है-
हमारी जन्मभूमि यह गाउँ ।
सुनहु सखा सुग्रीव-बिभीषन ! अवनि अजोध्या नाउँ ।।१।।
देखत बन-उपवन सरिता सर परम मनोहर ठाउँ ।
अपनी प्रकृति लिए बोलत हौं, सुरपुर मैं न रहाउँ ।।२।।
यहाँ के बासी अवलोकत हौं
आनंद उर न समाउँ ।
सूरदास जो बिधि न सँकोचै तो
बैकुंठ न जाउँ ।।३।।
-श्रीसूरदास जी रचित सूर रामायण से
वेद, पुराण और शाश्त्र अयोध्या जी की महिमा का गायन करते हुए कहते हैं कि जो किसी भी जन्म में अयोध्याजी का बास पा जाता है वह किसी न किसी जन्म में श्रीराम परायण-श्रीराम चरनानुरागी अवश्य बन जाता है ।
अयोध्याजी और अवधवासी भगवान राम को बड़े प्रिय हैं तभी तो राम जी अयोध्याजी में ग्यारह हजार वर्ष तक प्रत्यक्ष रहे और परम धाम गए तो सबको अपने साथ ले गए ।
।। अयोध्यापति भगवान श्रीरामचंद्र जी की जय ।।
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