प्राचीन काल में एक शुक नाम के ज्ञानी महात्मा रहते थे । ये देवों के
उत्थान और राक्षसों के विनाश के लिए यज्ञ किया करते थे ।
देवताओं के हितचिंतक होने से राक्षस इनके बिरोधी हो गए । और वज्रदंष्ट्र नामक एक राक्षस इनका अपकार करने के लिए लग गया ।
एक बार महात्मा अगस्त्य इनके आश्रम पर पधारे । आदर-सत्कार करके शुक मुनि ने अगस्त्य जी को भोजन के लिए आमंत्रित किया ।
जब अगस्त्य जी स्नान करने चले गए तो वह राक्षस अगस्त्य जी का रूप धरकर
आश्रम में आया और बोला यदि तुम मुझे भोजन कराना चाहते हो तो भोजन में बकरे के मांस
का प्रबंध करो ।
अगस्त्य जी जब भोजन करने बैठे तो वह राक्षस मुनि की पत्नी का रूप धारण करके तरह-तरह के मांस युक्त भोजन परोसकर गायब हो गया । इस राक्षस ने मुनि की पत्नी को आश्रम में ही पहले ही मूर्छित कर दिया था ।
अगस्त्य जी को भोजन देखते ही क्रोध आ गया और मुनि को शाप दे दिया कि
तूँ मांस भक्षी राक्षस बन जा ।
मुनि ने कहा कि आपकी आज्ञा से ही ऐसा भोजन बनाया गया है । अगस्त्य जी
ने ध्यान करके देखा और बोले यद्यपि तुम्हारा अपराध नहीं है फिर भी तुम्हें राक्षस
बनना पड़ेगा ।
अगस्त्य जी बोले कि तुम रावण की सेवा में चले जाओ । जब भगवान श्रीरामचन्द्रजी रावण वध के लिए समुद्र तट पर बानरों और भालुओं की सेना लेकर आएँगे तब
रावण का दूत बनकर राम जी की सेना में जाने से और वापस आकर रावण को समझाने के बाद भगवान
श्रीरामचंद्र जी का दर्शन करके तुम पूर्ववत अपने मुनि स्वरूप को प्राप्त कर लोगे-
ऋषि अगस्त्य की साप भवानी । राक्षस भयेउ रहा मुनि
ज्ञानी ।।
बंदि राम पद बारहिं बारा ।
मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा ।।
इस प्रकार रावण के गुप्तचर शुक का भगवान श्रीराम की कृपा से उद्धार हुआ ।
।। जय श्रीराम ।।
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