भगवान श्रीराम का एक नाम सत्य
प्रतिज्ञ है अर्थात राम जी अपनी प्रतिज्ञा को सदैव सत्य करते हैं । रामजी का एक नाम दृढ प्रतिज्ञ भी है अर्थात
रामजी अपनी प्रतिज्ञा का दृढ़तापूर्वक पालन करते हैं ।
महाराष्ट्र राज्य के नागपुर शहर के पास रामटेक नामक स्थान है । यहाँ
पर भगवान श्रीराम का एक बहुत प्राचीन मंदिर है । टेक का एक अर्थ प्रतिज्ञा होता है
। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने राक्षसों का वध करने के लिए इसी स्थान पर
प्रतिज्ञा लिया था । तभी से इस स्थान का नाम रामटेक है ।
जब भगवान श्रीराम दंडकारन्य में आए तो अस्थियों का ढेर देखकर रामजी
को बड़ी दया आई और रामजी ने मुनियों से पूछा । तब मुनियों ने कहा कि हे प्रभु आप सर्वदर्शी-सर्वज्ञ
और अन्तर्यामी-सबके हृदय की जानने वाले हैं । आपको तो सब पता है फिर भी जब आप पूछ
रहे हो तो हम बता रहे हैं । साधु-संतों को राक्षस खा जाते हैं । यह उन्हीं के
द्वारा खाए हुए साधु-संतों के हड्डियों का ढेर है-
अस्थि समूह देखि रघुराया । पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया ।।
निसचर निकर सकल मुनि खाए । सुनि रघुवीर नयन जल छाये ।।
यह सुनकर रामजी को बड़ा दुख हुआ । रामजी के कमल नयनों में जल आ गया और
रामजी ने मुनियों के समक्ष प्रतिज्ञा किया कि हम दुष्ट राक्षसों का विनाश कर
देंगे-
निशचर हीन करहुँ महि, भुज उठाय प्रण कीन्ह ।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन जाइ जाइ सुख दीन्ह ।।
राक्षसों के वध की बात सुनकर
सीतामाता को अच्छा नहीं लगा । जब रामजी थोड़ा और आगे चले तो सीताजी ने कहा प्रभु
अपनी यह प्रतिज्ञा छोड़ दीजिए । क्योंकि इस प्रतिज्ञा के कारण अनेकों राक्षसों का
वध होगा । और आपका इनसे क्या विरोध है ? अथवा राक्षसों ने आपसे कौन सा बैर किया है
? इसलिए आप अपनी प्रतिज्ञा को छोड़ दीजिए ।
तब रामजी ने कहा कि प्रतिज्ञा करके छोड़ देना उचित नहीं है । मैं आपको छोड़ सकता हूँ, लक्ष्मण को छोड़ सकता हूँ लेकिन इन मुनियों के समक्ष की हुई अपनी प्रतिज्ञा को नहीं छोड़ सकता हूँ ।
तब सीताजी ने कहा कि मैं चाहती हूँ कि आपको कोई दोष न लगे इसलिए ऐसी लीला रचूँगी जिससे राक्षसों का आपसे बैर हो जाए । और तब आप राक्षसों का वध
कर देना ।
बाद में रामजी ने दुष्ट
राक्षसों का वध करके अपनी प्रतिज्ञा को पूरी किया ।
।। जय श्रीराम ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें