बाल्मीकि जी ने भगवान श्रीराम के चरित्र का गायन अनेक रामायण लिखकर किया है । जिसमें से बाल्मीकि रामायण जी ही अधिक प्रसिद्ध हैं और आज भी उपलब्ध हैं । लेकिन बाल्मीकि रामायण संतों और भक्तों के ही समझ में आते हैं ।
आज के समय में सामान्य लोग न तो संस्कृत पढ़ पाते हैं और न समझ पाते हैं । कई लोग जो थोड़ा बहुत पढ़ लेते हैं गलत अर्थ लगा लेते हैं और वैसा ही प्रचारित भी करने लगते हैं । कई पढ़े लिखे लोग भी गलत अर्थ करते हैं और ठीक से समझ नहीं पाते हैं ।
कलियुग में ज्ञान धीरे-धीरे
लुप्त होने लगता है । आजकल संस्कृत भाषा का ज्ञान भी लुप्त प्राय सा हो गया है ।
सामान्यतया लोग न संस्कृत बोल पाते हैं और न ही समझ पाते हैं और न ही पढ़ पाते हैं ।
दूसरी ओर कलियुग में छल, झूठ और कपट अधिक बढ़ जाते हैं । जीवों में कुटिलता आ जाती
है । ऐसे में कलियुग के लोगों का परम कल्याण कैसे हो पाता ।
कलियुग के कुटिल जीवों के परम कल्याण के लिए बाल्मीकि जी गोस्वामी
तुलसीदास जी महाराज के रूप में प्रगट हुए । और हिंदी-सरल अवधी भाषा में जन कल्याणार्थ
श्रीरामचरितमानस और श्रीविनयपत्रिका आदि जैसे ग्रंथ रत्न देकर गए ।
आज के इस कराल कलिकाल में जो अपना परम कल्याण करना चाहते हैं और पता
नहीं है कि क्या करना चाहिए ? अथवा अलग-अलग लोगों से अलग-अलग विचार सुनकर निश्चय
नहीं कर पाते कि क्या करना चाहिए ? तो ऐसी
स्थिति में श्रीरामचरितमानस और श्रीविनयपत्रिका जी की शरण ले लेनी चाहिए ।
श्रीरामचरितमानस और श्रीविनयपत्रिका जी के अनुरागपूर्वक नियमित पाठ से जीवन बदलना
शुरू हो जाता है और कल्याण भी हो जाता है ।
धन्य हैं गोस्वामी तुलसीदास
जी जिन्होंने हम सबके कल्याण के लिए लीक
से हटकर अर्थात संस्कृत भाषा में ग्रंथ न लिखकर सरल अवधी भाषा में लिखा और
इतना ही नहीं वेदों-पुराणों, उपनिषदों, शास्त्रों आदि के सूत्र और भक्ति, ज्ञान और
वैराग्य के सिद्धांतों को बड़े ही सरलता के साथ अपने ग्रंथों में समाहित कर लिया ।
इसलिए ज्यादा भटकने की जरूरत नहीं है, जरूरत है तो ईमानदारी की । यदि ईमानदारीपूर्वक
हम श्रीरामचरितमानस और श्रीविनयपत्रिका जी का पाठ करें, अपने जीवन में उतारने का
प्रयास करें तो और कुछ पढ़ने-सुनने और करने की जरूरत शेष नहीं रहेगी-
काल कराल जानि जग तारन मानस विनय दिए दुख हारे ।
साधु सुजान मुदित मन गावत आप तरे अरु लोकहु तारे ।।
।। गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की जय ।।
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