भगवान श्रीविष्णु भगवान श्रीराम की स्तुति करते हुए कहते हैं कि जिस समय आप अपने एक रूप को अनेक रूपों में विभक्त करके विश्व का विस्तार करते हैं उस समय जैसे सूर्य से ये किरणें प्रसरित होती हैं, उसी प्रकार हमलोग आपसे प्रादुर्भूत होते हैं ।
इस प्रकार समस्त देवता और व्रह्माजी, शंकरजी, विष्णुजी आदि और सभी पितर
समस्त जगत राम जी के अंशभूत हैं । रामजी की विभूतियाँ हैं -
यस्यांशभूताश्र्व वयं तथान्ये
सुरः समस्ताः पितरश्च सर्वे ।
किं वा बहूक्तेन जगत समस्तं
विभोर्विभूतिः परमा रिरंसोः ।।
- श्रीराम गीता (स्कंद पुराण)।
कई लोग अज्ञान अथवा आसक्ति बस भगवान श्रीकृष्ण को भगवान राम से भिन्न
अथवा उत्कृष्ट बताने अथवा सिद्ध करने का प्रयास करते हैं । यह सही नहीं है ।
श्रीवाल्मीकि रामायण (श्री वाल्मीकि कृत) और श्रीपद्म पुराण (श्री वेद व्यास कृत) में व्रह्मा जी कहते हैं हे राम आप ही श्रीकृष्ण हो – ‘सीता लक्ष्मीर्भवान विष्णुर्देवः कृष्णः प्रजापतिः’ ।
श्रीराम गीता के तीसरे
अध्याय में इंद्र कहते हैं कि यद्यपि आप दैवी वाणी के अगोचर, ब्रह्मादि देवों के लिए
भी अचिन्त्य, अविनाशी, अद्वितीय प्रभु हैं, तथापि मैं आपको धनुष द्वारा शासन
करनेवालों में श्रेष्ठ एक रघुवंशी राजा ही समझता था ।
इंद्र ने जो कहा उसका मतलब है कि रामजी की लीला, गुण, चरित्र, स्वरूप, प्रभाव आदि बहुत गूढ़ हैं । किसी के समझ में आसानी से नहीं आते । गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज कृत श्रीरामचरितमानस जी में भगवान शंकर जी ने कहा है-
उमा राम गुन गूढ़ पंडित मुनि पावहिं विरति ।
पावहिं मोह विमूढ़ जे हरि
बिमुख न धर्म रति ।।
राम देखि सुनि चरित तुम्हारे । जड़ मोहहिं बुध होहिं सुखारे ।।
भगवान श्रीराम, श्रीराम गीता के तीसरे अध्याय में देवताओं से कहते
हैं कि इस समय तुमलोगों ने मेरे जिस सनातन विश्वरूप-विराट स्वरूप का दर्शन किया
है, यह अनेक व्रह्मांडों से सुशोभित मेरा एक अंश मात्र है । इसके ऊपर जो मेरा परम
स्वरूप है तुम सब लोग कभी भी मेरा दर्शन नहीं कर सकते ।
देवता और मनुष्य भी भक्ति द्वारा ही उस परम स्वरूप का दर्शन कर सकते
हैं ।
श्रीराम गीता में बालखिल्य कहते हैं कि हे श्रीराम आप से पर अथवा अपर
कुछ भी नहीं है और न कुछ आपसे अणु अथवा महान ही है । आप सदा अद्वितीय, स्वराट और
अचल हैं ।
रामजी ने कहा है कि मैं ही स्वयंप्रकाश सनातन भगवान हूँ । ईश्वर हूँ । मैं ही परब्रह्म परमात्मा हूँ । मुझसे भिन्न दूसरी वस्तु की सत्ता नहीं है –
अहं हि भगवानीशः स्वयंज्योतिः सनातनः ।
परमात्मा परं व्रह्म मत्तो ह्यन्यनन् विद्यते ।।
इस प्रकार रामजी से पर या अपर कुछ भी नहीं है । यदि कुछ है तो वह वास्तव
में है ही नहीं अर्थात वह कल्पनामात्र ही है उसका अस्तित्व नहीं है ।
।। जय श्रीराम ।।
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