कई लोग कहते हैं, बताते हैं कि शरीर संसार अपने नहीं है केवल भगवान ही अपने हैं । यह बोलना बहुत आसान है । लेकिन वास्तव में इसके अनुरूप जी पाना आसान नहीं है । कई लोग ऐसा बोलते रहते हैं और दूसरों को बताते रहते हैं । लेकिन इसे जीवन में उतार नहीं पाते । और यही सुनते, बोलते और बताते जीवन का अंत आ जाता है । वास्तव में ऐसा क्यों नहीं हो पाता यह जानना, यह समझना बहुत जरूरी है । यह बात तो सच है लेकिन वास्तव में जीवन में कब और कैसे उतरेगी ?
कई संतों ने भी इस बात को पुरजोर तरीके से समझाने का प्रयास किया है । कुछ लोग या ऐसा कहें कि गिनती के लोग इसके अनुरूप जीवन जीने में सफल भी हुए होंगे । लेकिन बड़े पैमाने पर लोग इसके अनुरूप जीवन जी पायें हैं अथवा जीवन जी पा रहे हैं ऐसा कहना बहुत मुश्किल है ।
ऐसे में क्या उपाय है ? माया-मोह से जीव मुक्त कैसे हो पायेगा ? शरीर
संसार अपना नहीं है केवल भगवान अपने हैं इसके अनुरूप जीवन कैसे हो पायेगा ?
ऐसा इसलिए नहीं हो पाता
क्योंकि वास्तव में जीव की यह सामर्थ्य ही नहीं है कि वह माया-मोह से मुक्त हो सके
। बोलने और बताने की बात अलग है । कोई भी
बोल देगा । बता देगा कि शरीर संसार अपने नहीं हैं केवल भगवान ही अपने हैं । लेकिन बोलने
से काम थोड़े चलता है ।
जब तक शरीर संसार से मोह भंग नहीं होगा तब तक काम बनने वाला नहीं है ।
हनुमानजी महाराज स्वयं भगवान श्रीराम से कहते हैं कि-
‘नाथ जीव तव माया मोहा । सो निस्तरइ तुम्हारिहिं छोहा ।।
-श्रीरामचरितमानस ।
अर्थात बिना राम जी की कृपा के जीव मोह से उपराम नहीं हो सकता । नहीं
हो सकता । नहीं हो सकता ।
गोस्वामीजी श्रीविनयपत्रिका जी में कहते हैं कि-
तुलसिदास यह जीव मोह रजु जोइ बाँध्यो सोइ छोरै ।
अर्थात जीव मोह रुपी रस्सी में बँधा हुआ है । बँधा तो है ।
छूटेगा कैसे ? अपने आप । अपने बल पर । दोनों में से कोई नहीं । तब कोई और छुड़ा
देगा । कोई और भी नहीं छुड़ा पायेगा । तब कैसे छूटेगा ?
गोस्वामीजी जी का भाव है कि मोह रुपी रस्सी की जो गाँठ है वह कोई
सामान्य गाँठ नहीं है । बहुत ही अजीब गाँठ है । ऐसी गाँठ है कि जिसे खोलना किसी को
आता ही नहीं । जितना खोलना चाहो और उलझ जाती है । इसलिए सारे जतन बेकार हो जाते
हैं ।
अब जिसने यह गाँठ लगाई है
उसे ही इसको खोलने का रहस्य पता है । इसलिए यह उसी के खोलने से खुलेगी । और जैसे
यह गाँठ खुलेगी जीव मोह रुपी रस्सी से छूट जायेगा ।
इस प्रकार यह जीव के बस की
बात नहीं है कि वह मोह रुपी रस्सी से मुक्त हो जाए । इसलिए यह कहने से कि शरीर
संसार अपना नहीं है कल्याण होने वाला नहीं है ।
तब जीव क्या करे । जीव भगवान राम से प्रार्थना करे और भगवान राम की
शरण हो जाए । बस गाँठ भी खुल जायेगी और कल्याण भी हो जायेगा । और दूसरे साधन सफल
होंगे अथवा नहीं इस बात को ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता है । एक मात्र पूर्ण सफल साधन है
शरणागति ।
।। जय श्रीराम ।।
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