कई लोग आजीवन गीता जी के प्रचार और प्रसार में लगे रहते हैं । कई लोग आजीवन गीता जी पर प्रवचन करते रहते हैं । कई लोग गीता कंठस्थ कराते हैं और कई लोग गीता जी को कंठस्थ कर लेने पर जोर देते हैं । यह सब बहुत अच्छी बात है । यह सब भी साधना है ।
जो लोग उच्च कोटि के साधक
हैं उन्हें गीता जी के गूढ़ रहस्य समझ में आते होंगे । निष्काम कर्म योग, ज्ञान योग आदि
समझते होंगे और जीवन में उतारते भी होंगे । क्योंकि जीवन में उतारना ही लक्ष्य है ।
यदि जीवन में गीता जी की बातें नहीं उतरी तो उपरोक्त साधना सफल हो गई ऐसा कहना
मुश्किल है ।
लेकिन जो सामान्य साधक हैं उन्हें निष्काम कर्म योग, ज्ञान योग आदि की बातें
गले नहीं उतरती । ऐसे में उनके लिए कौन सी सहज साधना है ?
अर्जुन जी ने सारी गीता सुन लिया, भगवान के विराट स्वरूप का दर्शन कर लिया और महाभारत का युद्ध भी लड़ लिया । इस प्रकार अर्जुन जी गीता ज्ञानी हो गए । गीता में भगवान ने अर्जुनजी को श्रीराम नाम जप का उपदेश नहीं किया है । इसलिए इस साधना का उपदेश गीता जी से आगे की बात है ।
एक बार अर्जुन जी ने भगवान से पूछा कि सहज साधना क्या है ? जिससे जीव सहज ही संसार सागर से मुक्त हो जाए ।
तब भगवान ने गीता जी से आगे की बात बताई कि सबसे सहज साधना है राम
नाम का जप । इससे सहज कोई साधना नहीं है । इस प्रकार स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन
जी को राम राम जपने का उपदेश किया । ऐसा ही उपदेश भगवान व्यास ने धर्मराज
युधिष्ठिर को भी किया था और 'श्रीराम' को परम जपनीय मंत्र बताया था ।
राम राम जपकर सहज ही मुक्ति और मुक्ति के भी आगे की चीज भगवान की
भक्ति मिल जाती है । यह साधना छोटे बड़े सभी साधकों के लिए एक समान सुलभ और सुखकारी
है और परम सहज साधना है ।
।। जय श्रीराम ।।
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