सीता जी के स्वयंवर की शर्त थी कि जो शिव जी का महान धनुष तोड़ेगा उसी के साथ सीताजी का विवाह होगा ।
बड़े-बड़े
बलवान राजा आए लेकिन कोई भी राजा धनुष को हिला भी नहीं सका । सबको पहले मौका भी
दिया गया । नहीं तो बाद में कहते कि मुझे मौका ही नहीं मिला नहीं तो मैं ही तोड़
देता । जब सब हार चुके और राजा जनक ने भी बोल दिया कि लगता है पृथ्वी वीरों से
खाली हो गई है । इसके बाद ही विश्वामित्रजी ने रामजी को आज्ञा दिया कि हे रामजी अब
आप उठिए और धनुष तोड़कर जनकजी के संताप को दूर कर दीजिए ।
तब रामजी
ने गुरू जी की आज्ञा से सहज भाव से ही धनुष तोड़ दिया । और सारे जनकपुर वासियों को
सुखी कर दिया-
‘सबकर सोच मिटायेउ स्वामी
भंजेउ शिव धनु भारी ।
राजा रानी सिया सहेली हर्षे
पुर नर नारी’ ।
परशुरामजी आए और राम जी का बल देखकर नतमस्तक होकर
चले गए । रामजी ने गुरूजी की आज्ञा से धनुष तो तोड़ दिया लेकिन जब सीता जी को
स्वीकार्य करने की बात आई तब रामजी ने कहा कि इस सम्बंध में मैं पिताजी की आज्ञा
के अधीन हूँ ।
जब मेरे पिताजी महाराज दशरथ जी की आज्ञा मिल जाएगी तब ही मैं इन्हें स्वीकार कर पाऊँगा ।
वनवास के दौरान सती अनुसूया जी ने माता सीता से इनके विवाह की लीला,धनुर्भंग लीला आदि के सम्बंध में माता सीता से पूछा था । तब माता सीता ने उन्हें यह बात भी बताया था ।
फिर जनकपुर से अयोध्या जी के लिए दूत भेजा गया और
दशरथ जी को बुलाया गया । दशरथजी अयोध्याजी से बरात लेकर जनकपुर आए और फिर बिधि
पूर्वक- शुभ मूहूर्त में लौकिक और वैदिक बिधि से श्रीसीताराम जी का विवाह सम्पन्न
हुआ ।
रामजी की यह लीला आज के समय में सभी के लिए अनुकरणीय
है । और माता-पिता, पुत्र-पुत्री सबके लिए लाभकारी है और सीख लेने योग्य है । इससे
कई समस्याओं का समाधान भी हो सकता है । धन्य हैं रामजी और उनकी लीला । धन्य है
रामजी की मर्यादा ।
।। श्रीसीताराम भगवान की जय ।।
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