संतों और भक्तों के गुण स्वयं भगवान गाते हैं । संतों की महिमा स्वयं भगवान कहते हैं । संतों और भक्तों की महिमा गाने वाले श्रीभक्तमाल ग्रंथ से कौन परिचित नहीं होगा । लेकिन कलियुग में साधु, संत, भक्त, सदग्रंथ और धर्म की बुराई करने वाले दिनों-दिन बढ़ते जाते हैं ।
भक्तमाल की कथाएँ भी होती रहती हैं । और भक्तमाल की
पुस्तक लेकर भी पढ़ा जा सकता है । इससे बहुत लाभ होता है । यहाँ लाभ का मतलब मुख्यतः भजन-साधना में लाभ से है ।
श्रीरामचरितमानस जी में संत और असंत का वर्णन कई
बार आया है । भगवान श्रीराम ने स्वयं अरण्यकांड में नारद जी से संत महिमा कही है ।
इसी तरह उत्तरकाण्ड में भी संत और असंत के
लक्षण भगवान श्रीराम ने कहा है ।
भगवान
श्रीराम ने स्वयं दिखाया है कि साधु-संत का आदर और सत्कार करना चाहिए । इसलिए सभी
को साधु-संत का आदर और सत्कार करना चाहिए ।
कलियुग का प्रभाव बढ़ने से सबका प्रभाव कम होने
लगता है । अथवा प्रभाव जल्दी समझ में नहीं आता है । और इसलिए साधु, संत, सदग्रंथ
और धर्म की बुराई करने वाले और इनको न मानने वाले बढ़ने लगते हैं ।
लेकिन जब कोई संत ही संतों की बुराई करने लग जाए
तब इससे बड़ी बिडम्बना और क्या होगी ? पिछले पोस्ट में जिन संत से गोरे राम जी की
चर्चा के बारे में बताया गया था । वे बड़े
से बड़े संत की भी बुराई बड़ी आसानी से कर देते हैं ।
एक बार तो इन्होंने यहाँ तक कह दिया कि बड़ी-बड़ी
कथाओं में जो संत-वक्ता के साथ कई संत आते हैं वे माल-पुआ काटने और मोटी दक्षिणा पाते
हैं इसलिए आते हैं । शायद ऐसा कोई साधरण व्यक्ति भी नहीं कहेगा । अथवा वही कहेगा
जिसने साधुओं और गुरजनों की सभाओं का ठीक से सेवन नहीं किया है-‘जिन्ह गुर साधु
सभा नहिं सेई’ ।
लेकिन यह
सोचने वाली बात है कि जो बीस-तीस-चालीस वर्ष से भजन में लगा है, बड़े संत का संग कर
रहा है वह क्या माल-पूड़ी काटने के लिए अथवा दक्षिणा के लिए सत्संग करने जाएगा ?
ऐसा बिचार मन में आ जाए तो वाणी में नहीं लाना चाहिए । कम से कम किसी से कहना नहीं
चाहिए । यह कलिकाल का ही प्रभाव है ।
इन्होंने
एक बार कहा कि बड़े-बड़े आश्रमों में जाकर देखों कितना राग-द्वेष भरा है । मैंने
इनको बताया कि वहाँ हजारों-लाखों की संख्या में लोग जुड़े हैं वहाँ ऐसा होना कोई
आश्चर्य नहीं है । लेकिन आप से तो अभी बहुत कम लोग जुड़े हैं फिर भी लोगों में
कितना राग-द्वेष है । तब इन्होंने मेरी बात को हँसी में टाल दिया ।
उपरोक्त बातों का उल्लेख इसलिए किया गया है कि
केवल नास्तिक प्रकृत के लोग जो वेद-भगवान को नहीं मानते केवल वे लोग ही साधु-संत
की निंदा नहीं करते बल्कि कुछ साधु-संत भी बड़े-बड़े साधु-संतों की बुराई व निंदा
करते हैं । कारण कुछ भी हो ।
इसलिए इस कराल कलिकाल में बहुत बच कर रहने की जरूरत होती है । कौन कब और कहाँ तथा किसलिए गुमराह कर दे अथवा गुमराह करने का प्रयास करे कुछ कहा नहीं जा सकता है । और ऐसे लोगों से बच कर रहना चाहिए-'जिन्ह गुर साधु सभा नहिं सेई' ।
।। जय श्रीराम ।।
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