सबको पता होगा कि पहले अपने यहाँ अर्थात सनातन परंपरा में नियम, संयम, ज्ञान, संस्कार आदि गुरू शिष्य परंपरा से आगे की पीढ़ियों में आते थे । इसके लिए शिष्य को कठोर परिश्रम करना पड़ता था । कई वर्षों तक गुरुजनों और साधुओं की सभाओं का सेवन करना पड़ता था । और स्वयं का स्वाध्याय और आत्म चिंतन भी होता था । तब कहीं जाकर भगवान की कृपा से परिपक्कवता आती थी ।
लेकिन आज कराल कलिकाल है तो ‘जिन्ह
गुरु साधु सभा नहिं सेई’ ऐसे लोग भी कथा और उपदेश कहने और देने लगते हैं । ऐसे
लोगों के मुँह से कोई अशास्त्रीय बात निकले अथवा गुमराह करने वाली कथा कहें या
उपदेश करें तो कोई आश्चर्य नहीं है ।
आज के समय में कोई किसी पुरुष को कहे
कि आप तुलसीदास जी और किसी स्त्री को कहे कि आप भी मीराबाई बन सकती हो । तो यह गुमराह करने वाली बात है । यह कहना कि
पूजा-पाठ करो, भजन करो, जितना हो सके नाम जप करो, भगवान का स्मरण करो तो ठीक है ।
लेकिन किसी को तुलसीदासजी अथवा मीराबाई बनाने की बात कहना गुमराह करना है ।
जो बड़े-बड़े भक्त हुए हैं वे किसी के बनाए नहीं बने थे । वे बने-बने
आए थे । जो बड़े-बड़े भक्त हुए हैं उनके रूप में कोई पहले का बड़ा भक्त ही आया था और
उनका जन्म और कर्म आरंभ से ही उत्तम होता है ।
गोस्वामी तुलसीदास जी जब
प्रगट हुए तो राम-राम बोले । आम बालकों की भाँति रोये नहीं थे । हर जीव के साथ
उसका प्रारब्ध आता है । उसी के अनुसार वह आगे बढ़ता है । गोस्वामी तुलसीदासजी कोई
साधारण व्यक्ति नहीं थे स्वयं श्रीराम भक्त श्रीवाल्मीकि जी ही श्रीतुलसीदास जी
बनकर आए थे ।
इसी तरह से मीराबाई भी जन्म
से भक्ता थीं । वे किसी के बनाने से भक्त नहीं बनी थीं । उनका जन्म और कर्म दोनों
उत्तम था । उनका भी भक्त का प्रारब्ध साथ आया था । वे कोई साधारण स्त्री नहीं थीं ।
वे पूर्व जन्म की भगवान के समय की गोपी थीं ।
एक लोग कथा कह रहे थे । ऐसे ही मीराबाई बनने वाली बात बताई । बोले कि आप लोग भी मीराबाई बन सकती हो । इनकी कथा सुनने वाली एक स्त्री एक दिन अपने पति से बोली कि आज से मेरा और आपका कोई सम्बंध नहीं रहेगा । मैं घर छोड़कर चली जाऊँगी । और बोली कि रोटी और कपड़ा की समस्या है नहीं तो मैं यहाँ एक दिन न रुकती ।
फिर एक दिन पति से बोली कि मुझे गुरू जी से मिला लाओ । पति ने समझाया कि अभी बेटा छोटा है, बेटी की पढ़ाई चल रही है । संत जी कहीं न कहीं आते जाते रहेंगे । हर जगह हम लोग थोड़े पहुँच सकते हैं । अभी मुझे नौकरी भी करनी है । जिनके बच्चे सेटल हो गए हैं अथवा जो रिटायर हो गए हैं उनसे अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए । वे समय दे सकते हैं । हम लोगों के लिए समस्या है । और संत जी को गए अभी दो महीने ही हुए हैं । इतने जल्दी फिर मिलने की क्या जरूरत है ।
उनकी प्रबलतम इच्छा देखकर पति अपनी पत्नी को पत्नी के गुरूजी के पास ले गया । और पत्नी के गुरूजी से कहा कि ये घर छोड़ने की बात कर रही हैं । तब संत जी ने कहा कि घर छोड़ देंगी तो रहेंगी कहाँ ?
उन्होंने कोई बिधि-निषेध की बात नहीं की । केवल इतना कहा कि रहेंगी कहाँ ? कोई शास्त्रज्ञ होता तो बिधि-निषेध की बात बताकर समझाता ।
एक शास्त्रज्ञ संत बता रहे थे कि मीराबाई भक्ता थीं उनसे कोई अशास्त्रीय कार्य हो ही नहीं सकता था और मीरा जी ने कोई अशास्त्रीय कार्य नहीं किया था । जब तक उनके पति जीवित थे उन्होंने घर से बाहर पैर नहीं निकाला । और पति आज्ञा में रहीं । पति के मृत्यु के पश्चात वे घर के लोगों से सताए जाने के बाद बाहर निकलीं ।
एक दिन उस स्त्री ने अपने पति से कहा कि मैं लोक-लाज तजि दूँगी । और गुरू जी के साथ रहूँगी तो उनकी बदनामी होगी । इसलिए जहाँ वे रहेंगे । उनके आस-पास रहूँगी ।एक दिन उस स्त्री ने कहा कि गुरू जी के पास जाते ही मेरा स्त्री भाव समाप्त हो जाता है अर्थात मैं भूल जाती हूँ कि मैं स्त्री हूँ ।
लेकिन यदि लोक-लाज तजने से भगवान मिलने लगते तो अब तक कई पुरुष और
स्त्री भगवान को प्राप्त कर चुके होते । मीरा जी ने जब कहा कि ‘करि सिंगार बाँध पग गुघुरू लोक लाज तजि
नाची’ तब उनकी स्थित और परिस्थिति दूसरी थी । वे लोक-लाज तजने से भक्त नहीं बनी थीं ।
वे जन्म से भक्त थीं । आज के समय में कोई सोचे कि लोक लाज तजने से कोई मीराबाई बन
सकता है । तो यह गलत है ।
एक बार संतजी ने एक दूसरी स्त्री से पूछा कि माता जी भजन चल रहा है । वह बोली महाराज जी थोड़ा-बहुत जो कर पाती हूँ करती हूँ । अभी बेटियों की शादी करनी है । तो ये बोले तब भगवान नहीं मिलेंगे, कर लो बेटियों की शादी । क्या यह सोचने वाली बात नहीं है कि अगर कोई बेटियों की शादी नहीं करेगा तो लोक व्यवहार का क्या होगा ? क्या गृहस्थ का यह धर्म नहीं है ? इस बात से भी लोग गुमराह हो सकते हैं ।
संत जी उपदेश देते हुए कह रहे थे कि बेटियों की शादी होते ही उनसे सारे रिश्ते समाप्त कर लो । वह सुखी रहे, दुखी रहे । इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए । बेटियों को शादी के बाद उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए और उनसे कोई मतलब नहीं रखना चाहिए । ये उपदेश किस शास्त्र का है, आज तक कम से कम मुझे पता नहीं है ।
कुल मिलाकर किसी को न तो गुमराह करने वाला उपदेश देना चाहिए और न ही ऐसी कथा कहनी चाहिए कि लोग गुमराह हो जाएँ । लोग भजन-साधना में लगें यह बड़ी अच्छी बात है लेकिन मीराबाई और तुलसीदास बनने की जिद करने की जरूरत नहीं है । भक्ति-भाव होगा तो भगवान स्वयं आकर घर में भी मिल जाएँगे और यदि भक्ति-भाव नहीं है तो घर छोड़ने से तीर्थ में भी भगवान नहीं मिलेंगे ।
।। जय श्रीराम ।।
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